BELBORON BONGA (बेलबोरोन बोंगा)

BELBORON BONGA (बेलबोरोन बोंगा) प्रश्न (1) संताल आदिवासी बेलबोरोन पूजा क्यों मनाते है ? प्रश्न (2) संताल आदिवासियों का दशांय नृत्य क्या है ?यह क्यों नृत्य किया जाता है ? प्रश्न (3) दशांय नृत्य में कुछ पुरुष महिलाओं का पोशाक क्यों पहनते है ? प्रश्न (4) गुरु बोंगा क्या है ? उत्तर : बेलबोरोन पूजा संताल आदिवासियों दुवारा मनाये जाने वाला पूजा है.संतालो के जोम सिम विनती के अनुसार जब धरती मे मनुष्यों द्वारा पाप बहुत बढ़ गया था तो परम सत्ता (सृष्टी कर्ता)ठकुर ने 12 दिन और 12 रात सेगेल दाह(अग्नि वर्षा) धरती के सिंगबीर और मानबीर जगहों में गिराये और इसके साथ-साथ पुहह(जीवाणु/वायरस)भी छोड़े और मनुष्य जाति को ख़त्म करने का निर्णय भी लिये.जब यह बात ठकरन को पता चला तो उसने ठकुर से कहा ये सभी हमारे ही बच्चे है इन सभी को नाश नहीं करे.ऐसा करनेसे हमें ही हानि होगी.इसके लिये मै लिटह (मराङ बुरु)से बात करुगी और हम दोनों मिलकर मनुष्यों को धर्म के रास्ते पुनः वापस लायेगे.उस समय लिटह (मराङ बुरु) देवता पृथ्वी लोक में ही रहते थे.इसके लिये ठकरन ने लिटह (मराङ बुरु)को मोनचोपुरी(पृथ्वी लोक) से शिरमापुरी(देवलोक)बुलायी और कही – मनुष्य पाप के रास्ते चल पड़ा है जिस कारण ठकुर इन मानव जाति को नाश करने वाले है.ठकुर का संदेश है कि हम दोनों(ठकुर और ठकरन) का सपाप(आभूषण और वस्त्र) मोनचोपुरी(पृथ्वीलोक) ले जाये और मनुष्य दशांय नृत्य और गीत के माध्यम हमारा गुणगान करे.मेरा सुनुम-सिंदुर(तेल-सिंदुर)ले जाये और गांव-गांव घुमाये.मेरा सपाप(आभूषण और वस्त्र) साड़ी,शंका(for hand),काजल आदि और ठकुर का सपाप(आभूषण और वस्त्र)लिपुर(For leg),पैगोन(small bell),मोर पंख आदि ले जाये.कुछ लोग मेरा सपाप(आभूषण और वस्त्र)पहनेऔर कुछ लोग ठकुर का सपाप(आभूषण और वस्त्र) पहने और दशांय नृत्य और गीत के माध्यम हमारा गुणगान करे.ऐसा करने पर ठकुर खुश हो जायेगे,उन्हें बिश्वास हो जायेगा कि मनुष्य पाप छोड़ धर्म के रास्ते चल पड़ा है,तब वे मनुष्य जाति का नाश नहीं करेगे.ठकरन ने लिटह (मराङ बुरु) से यह भी कहा कि मैं 12 गुरु बोंगाओ(गुरु देवताओ)को भी जाने के लिये कहुगा जो अपने-अपने कार्य क्षेत्र मे निपुण है.जैसे धोरोम गुरु बोंगा – धर्म और धन के देवता ,कमरूगुरु बोंगा – रोग मुक्ति के देवता,भुवग गुरु बोंगा- नृत्य,संगीत के देवता आदि .इन सभी को घर-घर घुमाओ,इससे ठकुर के माध्यम से मनुष्य जाति को ख़त्म करने के लिये छोड़े गए पुहह(जीवाणु/वायरस) के माध्यम से जो बीमारी फैली है वह इन गुरु बोगाओ(गुरु देवताओ) के माध्यम से खत्म हो जायेगा.इन गुरु बोगाओ(गुरु देवताओ) के माध्यम से मनुष्य बीमारियो का इलाज,दवा,जड़ी-बुटी,धर्म,तंत्र -मंत्र आदि सिखेगा.मोनचोपुरी(पृथ्वीलोक)मे मनुष्य गुरु बोगाओ से गुरु-शिष्य का सम्बंध स्थापित कर हमारा गुणगान करे.आगे ठकरन ने कहा मैं दशांय चांदु (दशांय संताली महीना) के छट्टा दिन(6th Day)को मोनचोपुरी(पृथ्वीलोक)मे गुरुबोगाओ(गुरु देवताओ) के साथ अवतरित होगी.इस दिन को संताल आदिवासी “बेलबोरोन पुजा”करते है.इस बेलबोरोन पुजा मे धोरोम गुरु बोंगा (2)कमरू गुरुबोंगा(3)भुवग गुरु बोंगा (4)कांशा गुरु बोंगा (5)चेमेय गुरु बोंगा (6)सिद्ध गुरुबोंगा (7)सिदो गुरु बोंगा (8)रोहोड़ गुरु बोंगा (9)गांडु गुरु बोंगा (10)भाइरोगुरु बोंगा (11)नरसिं गुरु बोंगा (12)भेन्डरा गुरु बोंगा की पूजा करते है. बेलबोरोन पुजा मे गुरु बोंगाओ के नाम पर सामान्यतः कोई बलि नहीं दिया जाता है और नो ही शराब चढाया जाता है.सिर्फ तेल,सिंदुर और पानी से पुजा किया जाता है.बेलबोरोन पुजा के एक सप्ताह पहले से गुरु-शिष्य गांव मे आखड़ा बांधते है जहा गुरु शिष्यो को मंत्र की सिद्धी,परंपरागत चिकित्सा विधि आदि का ज्ञान देते है.इसी दौरान गुरु-शिष्य पहाङ सहित कई जगहों पर जड़ी-बुटी के खोज मे जाते है जहाँ गुरु शिष्यो को जड़ी-बुटी की पहचान और उसका उपयोग किन बीमारियो मे किया जाताहै का ज्ञान देते है.बेलबोरोन पुजा के दुसरे दिन से तीन दिन लगातर गुरु-शिष्य गुरु बोंगाओ को लेकर गांव-गांव घुमाते है और दशांय नृत्य और गीत के माध्यम ठकुरऔर ठकरन का गुणगान गाते है और साथ –साथ भक्तों के घर मे सुख,शांति,धन आदि के लिये पुजा करते है.इसके उपलक्ष में इनलोगों को दान स्वरुप मकई,बाजरा आदि या रूपये/पैसे मिलते है.दशांय नृत्य में कई पुरुष महिला का पोशाक पहनते है.उनका मुख्य कारण यह है कि वे सभी ठकरन का सपाप(आभूषण और वस्त्र)को प्रतिकार्तामक रूप से पहनते है.बेलबोरोन पुजा के चौथा और अंतिम दिन अपने गांव मे दशांय नृत्य और गीत करते है और प्रसाद रूप जो अनाज दान में मिले है उसका वे खिचड़ी बना कर खाते है. इस तरह संतालो का बेलबोरोन पुजा गुरु-शिष्य का अट्तुथ सम्बन्ध का पूजा है.जो हमें पाप नहीं करने,धार्मिक बने रहने,समाज को रोगमुक्त बनाये रखने,परंपरागत जड़ी-बुटी चिकित्सा विधि को जीवित रखने,परंपरागत नाच गाने को बचाये रखने, संस्कृतिऔर प्रकृति को बचाए रखने और खुश रहने का संदेश देता है। 🙏जोहार🙏

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